Bell Bottom Review !!!

निर्देशक : रंजीत एम तिवारी

कलाकार : अक्षय कुमार, वाणी कपूर, लारा दत्ता,
हुमा कुरैशी, आदिल हुसैन, ज़ैन ख़ान…

OTT : Prime Video
⭐⭐⭐💫 3.5 / 5
अवधि : 2 hours 5 mins



कभी-कभी कुछ नया करने के लिए आपको नई सोच और नई चीजों पर दांव लगाना ही पड़ता है और वहीं से शुरुआत होती है एक नए इतिहास की।
फिल्म बेल बॉटम भी इसी तरह की एक चुनौतीपूर्ण घटना से प्रेरित फिल्म है, घटना पर आधारित फिल्म इसलिए नहीं कह सकते क्योंकि फिल्म को एक मसाला फिल्म बनाने के लिए रचनात्मक स्वतंत्रता ली गई है और वहीं पर यह फिल्म थोड़ा चूकती भी है क्योंकि सत्य घटनाओं को किसी भी मसाले की जरूरत नहीं होती है। यह शायद उनको नकली बना देता है।


बेल बॉटम की कहानी 80 के दशक की है और जिस तरह से प्रस्तुत की गई है वह आपको 80 के दशक का पूर्ण अनुभव कराती भी है। यह 1984 में हुए विमान अपहरण को हमारे सामने प्रस्तुत करती है और उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जी के एक सराहनीय फैसले को भी हमारे सामने प्रस्तुत करती है। यहां मैं एक बात और जोड़ना चाहूंगी कि RAW की स्थापना में इंदिरा गांधी का पूर्ण समर्थन और योगदान रहा है।
फिल्म पूर्ण रूप से खिलाड़ी कुमार की फिल्म है और वह पूरी तरह से खेल भी गए हैं। उन्होंने कोई चूक का मौक़ा नहीं दिया है और अपने सभी रंग (shades) प्रदर्शित किए हैं। फ़िल्म में वह एक Raw एजेंट की भूमिका में हैं, जितना कोड नेम बेल बॉटम है। इसके अलावा फ़िल्म में लारा दत्ता भी इंद्रा गांधी जी के किरदार में हैं और उनकी वेष भूषा भी बिल्कुल उपयुक्त रही है इस क़िरदार के लिए किंतु उनके पास करने को कुछ खास नहीं था कि वह अपनी छाप छोड़ पातीं और यही कहीं ना कहीं वाणी कपूर और हुमा कुरैशी के साथ भी हुआ है। क़िरदार ज़रूर हैं किंतु कुछ अलग कर दिखाने की संभावना उन किरदारों में नहीं है। इसी के साथ एक किरदार जो आपके ज़हन में रह जाएगा, वह है ज़ैन खान का, वह भी सिर्फ उनकी अदाकारी की वजह से क्योंकि करने के लिए इस किरदार के पास भी बहुत कुछ नहीं था किंतु जितना किया वह उनकी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए काफी था शायद। अच्छी अदाकारी।


फिल्म की रफ्तार फ़िल्म का सबसे बड़ा सकारात्मक पहलू है, जिसके चलते आप फ़िल्म से जुड़े रहते हैं। फ़िल्म में भूत और वर्तमान की कहानी का समिश्रण भी काफी बेहतरीन तरीके से बिठाया गया है।
फ़िल्म की कहानी आप को पूरी तरह से पकड़ कर रखती है और आप सोचते हैं, अब क्या होगा अब क्या होगा…
जो चीजें थोड़ी सी खड़कती हैं, वे हैं,
फिल्म का सिर्फ सत्य घटना से प्रेरित होना, आधारित ना होना।
सभी किरदारों को पूर्ण रूप से उपयोग ना करना।
फिल्म उतना भावुक और देश भक्ति का जज़्बा उत्पन्न नहीं करती जितना जरूरी था।


बाकी एक अच्छी फ़िल्म है। बिल्कुल देखे जाने योग्य है।

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